wildfantasystories office sex कहानी में पढ़ें कि मैंने अपने काम के लिए एक सहायिका रखनी थी. हमारी पड़ोसन भी काम की तलाश में थी. वो बुर्क़ा पहनती थी. मैंने उसे ऑफिस बुलाया.
नमस्कार, मैं दीपक उम्र तीस साल, गुजरात के एक नामचीन शहर का निवासी हूँ और फिलहाल मैंने अपने पापा का बिज़नेस में हाथ बंटाना चालू किया है.
पिताजी की उम्र के हिसाब से अब उन्होंने भी धीरे धीरे धंधे का सारा भार मेरे कधों पर डाल दिया था और मैं भी अपने ख़ानदानी पेशे को आगे बढ़ा रहा था.
जैसे जैसे पापा ने अपना काम मुझ पर डालना चालू किया, वैसे वैसे मैं घर पर कम रहने लगा. (Office sex story)
रात रात तक मुझे कामकाज़ करना पड़ता था और इसीलिए मैंने पापा की अनुमति से एक निजी सेक्रेटरी रखने का फैसला किया.
वैसे तो मैं पेपर में विज्ञापन आदि देकर किसी अच्छी पेशेवर लड़की को मेरे ऑफिस में रखना चाहता था.
पर अचानक एक दिन मां बोली- अरे तू जाहिरात(विज्ञापन) देकर क्यों पैसे जाया कर रहा है? वो अपने पिछले मोहल्ले के कुरैशी साहब है ना, उसकी बहू भी काम ढूंढ रही है, उसको ही रख ले.
पापा ने भी मां को सही साबित करते हुए कहा- हां बेटा तेरी मां सही बोली, देख पैसों का काम भी किसी अपने को ही देना चाहिए. दो तीन महीना देख ले अगर नहीं जमी, तो दूसरी रख लेना!
सुबह का नाश्ता करके मैंने मां से कहा- ठीक है, उनको बोल दो, मुझसे ऑफिस में आकर मिले और पैसों की बात आप मत करना, वो मुझ पर छोड़ देना.
मैं नाश्ता खत्म करके में ऑफिस निकल गया.
दोपहर का भोजन करके मैं कुछ ग्राहकों की फ़ाइल्स देख ही रहा था कि मुझे मेरे रिशेप्शन से कॉल आयी कि कोई औरत मुझसे मिलना चाहती है, कोई फातिमा खान आई हैं. (Office sex story)
दिन भर की भागदौड़ में मैं सुबह की बात भूल ही गया था.
पर तभी मुझे मां की बात याद आयी और मैंने झट से उसे मेरे केबिन में भेजने को कहा.
साथ में दो चाय भजने का कह कर मैंने फोन रख दिया.
दो मिनट में ही मेरे केबिन के दरवाजे पर ठक-ठक हुई और मैंने बड़े गंभीर आवाज़ में कहा- प्लीज कम इन.
जैसे ही दरवाजा ख़ुला, वैसे ही मेरी आंखें और जुबान दोनों बाहर आ गए.
कामदेवी का दूसरा रूप जो मेरे सामने खड़ा था.
वैसे तो मैंने मोहल्ले में फातिमा को एक दो बार देखा हुआ था, पर वो हमेशा बुरके में ही होती थी.
मगर आज शर्ट और पैंट में देख मेरे लौड़े ने भी उसको सलामी दे दी.
क्या भरा हुआ बदन था उसका, छाती के पहाड़ तो एक इंच भी झुके नहीं थे. (Office sex story)
आंखों में काजल और चेहरे का मेकअप फातिमा की जवानी को चार चांद लगा रहा था.
इतने में उसने ‘सलाम विराज़ जी …’ कहकर मेरे ध्यान को भंग कर दिया.
मैंने भी उसको बैठने के लिए बोलकर उसको राम राम कहा.
उसने मेरे सामने अपने पढ़ाई के और पुराने अनुभव के कुछ सर्टिफिकेट रख दिए.
मैं भी अपने आपको संभालते हुए उसके पेपर देखने लगा.
चाय आते ही मैं और फातिमा काम के बारे में चर्चा करने लगे.
उसकी बातों से मुझे लग रहा था कि इसे और अनुभव की जरूरत होगी, पर अगर ये मेरा निजी काम भी कर दे, तो भी मेरे लिए बहुत था.
मैंने भी ज्यादा ना खींचते हुए फातिमा को नौकरी पर रख लिया, उसके शौहर सलीम और घरवालों की खबर लेकर मैंने फातिमा को कल से ही काम पर आने को बोल दिया. (Office sex story)
बार बार मेरा धन्यवाद करती हुई जैसे ही वो जाने के लिए पलटी, उसी पल मैंने ठान लिया कि किसी ना किसी दिन इसको घोड़ी बनाकर इसकी गांड जरूर मारूंगा.
कम से कम चालीस इंच की गांड थी साली की … और इसीलिए बुरका पहनती थी कि कहीं सड़क चलते आदमियों के लौड़े खड़े ना हो जाएं.
उसको विदा करते करते मैं उसकी जबरदस्त गांड को ऊपर नीचे होते देख रहा था.
साला पूरा मन भटक गया काम से … और दिमाग में एक ही बात चलने लगी कि इसको कैसे पटाया जाए?
कॉलेज में मैं एक सीधा साधा लड़का था, यहां पर भी कोई खास लड़की मिली नहीं, जिसके साथ मैं इश्क़ लड़ा सकूं. (Office sex story)
हां एक बात तो है कि हर हफ्ते में एक बार मैं अपने काम से मुंबई जरूर जाता और वहां किसी रंडी को बुलाकर अपने लौड़े की सर्विसिंग जरूर करवा आता.
मैं दिन भर सोचता रहा कि कैसे मैं फातिमा को अपने जाल में खींचू और उसके बदन का मजा ले सकूं.
तभी मुझे मेरे एक दोस्त की बात याद आई.
वो साला लड़की पटाने में माहिर लौंडा था.
हर बार नए गिफ्ट, चॉकलेट, परफ़्यूम देकर वो किसी भी लड़की को पटा लेता और बहनचोद लौंडिया को चोद-चाद कर छोड़ देता.
मैंने भी वही नुस्खा अपनाया और ऑफिस को बाय बाय बोलकर सीधा एक महंगी परफ़्यूम की दुकान में आ गया.
उधर से एक महंगी परफ़्यूम की शीशी और कुछ चॉकलेट लेकर मैंने अपनी गाड़ी में रखे ताकि कल फातिमा को अच्छे से खुश कर सकूं.
दूसरे दिन जैसे ही फातिमा आयी, मैंने उसका बड़े प्यार से स्वागत करते हुए उसे परफ़्यूम और चॉकलेट दिया.
मेरे सौहाद्र भरे स्वागत से फातिमा भावुक हो गयी.
पर फिर मैंने उसको ये बात भी बताई- अब तो आपको और दिल लगा कर काम करना पड़ेगा. (Office sex story)
मैंने उसकी टेबल अपने ही कमरे में लगवाई ताकि मैं उसको काम सिखा सकूं और उसके बदन को आंखों से चोद सकूं.
आज भी सलवार कमीज में उसका बदन समा नहीं रहा था.
मेरे पास बैठकर काम सीखते करते कई बार मेरा हाथ उसके शरीर को छू रहा था पर उसने कभी इस बात का बुरा नहीं माना या मुझे रोकने की कोशिश नहीं की.
धीरे धीरे दिन बीतते गए और मेरा फातिमा के साथ एक दोस्ती भरा पर व्यावहारिक नाता बन चुका था.
कभी कभी मजाक में उसको जानेमन, जान और गुलबदन जैसे शब्द से संबोधित करता, तो वो शरमा कर मुस्कुरा देती.
कई बार किसी दोस्त की तरह वो मुझसे अपने सुख दुःख बांट देती और इसी से मुझे भनक लग गई कि उसके शौहर सलीम और उसके बीच में काफी दूरियां बनी हुई थीं.
सलीम के घर वाले तो नहीं, पर सलीम बड़ा ही शक़्क़ी किस्म का आदमी था. (Office sex story)
हर बात पर फातिमा को टोक देना, किसी के भी सामने उसकी बेइज्जती कर देना उसके लिए मामूली बात थी.
पहले तो उसने फातिमा को इस जॉब के लिए भी मना किया था पर सलीम की अम्मी ने फातिमा का पक्ष लेते हुए फातिमा को इस जॉब को स्वीकार करने दिया.
मैं फातिमा को ऐसे ही में बीच बीच में तोहफे दे दिया करता, तो वो खुश हो जाती और ये जरूर बताती कि मैं कितना अच्छा हूँ और सलीम कितना बुरा.
पर मैं जानबूझ कर उसकी इस बात को टाल देता क्यूंकि मुझे उसे मेरी तरफ और ज्यादा आकर्षित करना था.
कई बार काम की वजह से हम शहर से बाहर भी घूमने जाते, वहां पर फातिमा बिल्कुल मुझसे सटकर ऐसे चलती, जैसे कि मैं ही उसका शौहर हूँ.
एक बार मैंने रास्ते में एक गरीब आदमी को कुछ पैसे दिए तो उसने हमारे सर पर हाथ रख कर ये भी कह दिया- भगवान तुम दोनों की जोड़ी सलामत रखे.
इस बात पर फातिमा नाराज़ होने के बदले खुश दिखाई दी.
मैंने भी ये जान लिया था कि अब मुर्गी जाल में फंस चुकी है, बस अब हलाल होनी बाकी है.
फातिमा कई बार मेरे शरीर से इतनी अधिक सट कर खड़ी होती कि उसकी चूची मेरे एक बाजू पर पूरी दब जाती.
मेरे अन्दर उस वक़्त मानो भूकंप आ जाता, पर जैसे तैसे मैं खुद को काबू में कर लेता.
काम करते हुए कितनी बार मेरा हाथ मैं उसकी पीठ पर रखता, उसकी पीठ को सहलाता.
कभी कभी तो उसकी ब्रा की पट्टी के ऊपर से भी मेरा हाथ घूमता पर फिर भी वो कुछ नहीं कहती.(Office sex story)
मेरा हाथ का स्पर्श उसके शरीर की गर्मी महसूस करता और फातिमा की आंखों में एक मूक सहमति भी महसूस करता कि वो मेरे साथ कामरत होने के लिए बैचेन है.
मुझे और फातिमा दोनों को पता था कि हम एक दूसरे से मिलने के लिए तड़प रहे हैं.
पर मैं एक सही मौके की तलाश में था, जहां मैं इस जवान औरत का रस बड़े आराम से चूस चूस कर पी सकूं और इसकी चुदास अपने लौड़े से पीट पीट कर निकाल सकूं.
ऊपर वाले ने भी जैसे हमारी बात सुन ली थी.
मुझे मेरे पुराने ग्राहक से एक बड़ी डील को तय करने के लिए मुंबई आने का न्यौता मिला.
मैं भी जाने को तैयार हो गया.
उस वक्त मेरे दिमाग में ये नहीं था कि मैं फातिमा को भी साथ ले चलूं. (Office sex story)
मेरे जाने की खबर सुनकर दूसरे दिन फातिमा ने मुझसे कहा- दीपू जी, आप हमें भी ले चलिए ना? मैंने कभी मुंबई की जगमगाहट देखी नहीं है. इनसे तो कुछ होने से रहा, आप ही जन्नत दिखा दो?
उसकी बात सुनकर तो मेरा दिल और लौड़ा दोनों ख़ुशी से झूम उठे.
‘क्या शातिर दिमाग पाया है तुमने फातिमा …’ कहते हुए मैंने भी उसके करीब जाकर उसको गले से ही लगा लिया.
आज इतने महीनों में पहली बार मैंने फातिमा को गले लगाया था.
उसका भरा हुआ बदन दबाकर जो मजा मिला , वो शब्दों में कहना नामुमकिन है.
मजे की बात तो ये कि फातिमा ने भी मेरी बांहों में आकर अपना सीना जानबूझ कर मेरे सीने पर दबा दिया. (Office sex story)
उस सेक्सी की फड़फड़ाती चूचियां मेरे सीने में मानो धंस सी गयी थीं और नीचे से मेरे लौड़े से फातिमा के पेट पर धमक देकर उसे धन्यवाद दिया. (Office sex story)
तभी वो इठला कर बोली- दीपू जी, बड़ा बैचैन हो रहा है आपका, देखो कहीं बाहर ना आ जाए?
उसकी तरफ से इतना खुला इशारा मिलते ही मैंने भी उसकी गांड पर हाथ घुमाते हुए कहा- अगर आ जाए तो आप हो ना, आप संभाल लेना. वैसे आपसे संभाला तो जाएगा ना?
मेरी ऐसी नटखट बात से फातिमा शर्मा गयी और उसने अपना चेहरा मेरे सीने में छुपाते हुए कहा- कब से इन्तजार है आपको संभालने का दीपू जी, आप हैं कि मेरी तरफ देखते भी नहीं हैं. (Office sex story)
उसका चेहरा अपने सीने से हटाते हुए मैंने उसकी ठुड्डी को पकड़ पर ऊपर किया और कहा- हम तो पहले दिन से आपके हैं फातिमा, बस समय का इंतजार था.
इतना कहकर मैंने अपने होंठ उसके होंठों पर रख दिए.
हम दोनों एक दूसरे को बिछड़े प्रेमियों की तरह चूमने लगे.
मेरा हाथ उसकी गांड पर और उसका हाथ मेरे बालों में घुस कर मजा लेने लगे थे. (Office sex story)
हम दोनों एक दूसरे के शरीर एक दूसरे पर दबा रहे थे.
तभी किसी ने ने मेरे केबिन के दरवाज़े पर थपकी लगायी और मन मसोस कर मुझे फातिमा को अपनी बांहों से दूर करना पड़ा.
बाहर मेरी रिसेप्शनिस्ट खड़ी थी. वो ये पूछने के लिए आई थी कि मुंबई जाने की बुकिंग कब और कैसे करनी है?
पर मैंने पहले फातिमा से पूछना उचित समझा और उस रिसेप्शनिस्ट को बाद में आने का बोल कर उसको भगा दिया.
फातिमा को फिर से बांहों में भरते मैंने उससे पूछा- तुम्हारे घर वाले तो मान जाएंगे न? पहले उनसे बात कर लो … फिर आगे का प्लान करते हैं.
शाम तक हम दोनों एक दूसरे को देख कर, चूमते हुए काम करते रहे. (Office sex story)
फातिमा ने शाम को अपने घर वालों से बात भी कर ली पर सलीम हमेशा की तरह ना-नुकुर करता रहा.
आखिर फातिमा की जिद के आगे उसको हार माननी पड़ी और रात को बारह बजे फातिमा ने मुझे इस बात की खुशखबरी दी कि जल्दी ही वो मेरी बांहों में होगी.
दूसरे ही दिन मैंने क्लाइंट से दिन और समय तय किया, पर मेरा प्लान उसके एक दिन पहले से ही बनाना था.
फातिमा को मुझे जन्नत और मुंबई दोनों की सैर जो करवानी थी.
मैंने अपनी रिसेप्शन वाली लौंडिया से बोल कर मुंबई की ट्रेन में AC फर्स्ट क्लास के दो बर्थ वाले कूपे की बुकिंग करने को बोल दिया. (Office sex story)
मैं जहां हमेशा मुंबई में रूकता था, उस होटल वाले को भी बढ़िया कमरा देने की बात करके मामला फिट कर दिया.
अगले दिन शाम की ट्रेन थी मतलब मैं और फातिमा रात भर एक ही कूपे में होंगे और यही सोच कर मेरा लंड अभी से फड़फड़ाने लगा था.
जैसे तैसे मैंने अपना खाना खाया और मुंबई जाने की तैयारी करके सो गया. (Office sex story)
वहां फातिमा का भी वही हाल था, उसके दिल में जो ख़ुशी थी, वो बार बार मुझे मैसेज के जरिए लिख कर बता रही थी.
ऐसा लग रहा था कि मानो खुशियां पाने के लिए उसके सब्र का कोई इम्तिहान ले रहा है.
सुबह सुबह हम ऑफिस में मिले.
ऑफिस से ही हम मुंबई के लिए रवाना होने वाले थे, इसलिए हमारा सामान भी हमारे साथ ही था.
सारा दिन का काम निपटते-निपटते शाम के छह बज गए.
मैं फातिमा को साथ लेकर स्टेशन की तरफ निकल पड़ा.
बुरका पहनी फातिमा की आंखों की चमक मुझे उसके दिल का हाल बता रही थी.
शाम के साढ़े सात बजे ट्रैफिक से रास्ता निकालते हुए हम स्टेशन पर पहुंचे.
आजकल अंधेरा जल्दी होने लगा था और स्टेशन पर हमारी ट्रेन पहले ही लग चुकी थी. (Office sex story)
अपना डिब्बा और कूपा ढूंढते हुए मैं और फातिमा आख़िरकार कूपे में आ ही गए.
जैसे ही कूपे का दरवाज़ा मैंने बंद किया तो फातिमा ने मुझे जोर से झप्पी देते हुए मेरी छाती पर अपना चेहरा रख दिया.
वो भावुक हो गयी.
मैंने भी उस आज़ाद परिंदे को गले से लगा कर रखा.
कुछ देर उसके गर्म नर्म जिस्म को अपने बदन पर लगाते हुए उसकी जवानी का कामुक अहसास करने लगा.
फिर एक दूसरे से अलग होकर उसने अपना बुरका उतार दिया.
मेरे तो आंखों के अरमान पूरे हो गए, फातिमा ने बुरके के नीचे बस एक पतली सी नाइटी पहनी हुई थी. (Office sex story)
अब मैं समझा कि जब हम ऑफिस से निकले, तो इसी लिए वो बाथरूम का बहाना करके चली गई थी. उधर फातिमा ने अपने कपड़े चेंज कर लिए थे ताकि मेरे साथ हवस का खेल और मनोरंजक हो सके.
36 इंच की उसकी मनमोहक चूचियां उस झीनी नाइटी से खिल कर उभर आयी थीं.
उसकी हवस की आग इतनी ज्यादा हो गई थी कि उसके चूचुक संभोग के ख्याल से ही फूल चुके थे.
मुझे उसकी जांघों के बीच का भाग हल्का सा फूला हुआ गीला सा भी दिखाई दे रहा था.
आपके लंड और चुत में भी रस आ गया होगा कि फातिमा नाम की शै अब मेरे लौड़े के नीचे आने वाली है.
बस जरा सा सब्र कीजिए. मैं जल्दी ही wildfantasystories office sex कहानी का अगला भाग लेकर हाजिर होता हूँ.
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